Add To collaction

जातक कथा संग्रह

जातक कथाएं


विपस्सी बुद्ध

पालि परम्परा में विपस्सी उन्नीसवें बुद्ध माने जाते हैं। उनका जन्म बन्धुमती के खेम-उद्यान में हुआ था। उनकी माता का नान भी बन्धुमती था। 

उनके पिता का नाम बन्धुम था, जिनका गोत्र कोनडञ्ञ था। 
उनका विवाह सूतना के साथ हुआ था जिससे उन्हें समवत्तसंघ नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी।

एक रथ पर सवार हो उन्होंने अपने गृहस्थ-जीवन का परित्याग किया था।

 तत: आठ महीने के तप के बाद उन्होंने एक दिन सुदस्सन-सेट्ठी की पुत्री के हाथों खीर ग्रहण कर पाटलि वृक्ष के नीचे बैठ सम्बोधि प्राप्त की।

 उस वृक्ष के नीचे उन्होंने जो आसन बनाया था उसके लिए सुजात नामक एक व्यक्ति ने घास दी थी।

सम्बोधि प्राप्ति के बाद उन्होंने अपना पहला उपदेश अपने भाई संघ और अपने कुल पुरोहित पुत्र-लिस्स को खोयमित्रदाय में दिया था।

 अशोक उनके मुख्य उपासक थे तथा चंदा एवं चंदमिता उनकी मुख्य उपासिकाएँ थी।

 पुनब्बसुमित्त एवं नाग उनके मुख्य प्रश्रयदाता तथा सिरिमा एवं उत्तरा उनकी प्रमुख प्रश्रयदातृ थीं। अस्सी हजार वर्ष की अवस्था में वे परिनिवृत हुए।

विपस्सी बुद्ध के काल में बोधिसत्त अतुल नामक नागराज के रुप में जन्मे थे। तब उन्होंने विपस्सी बुद्ध को एक रत्न-जड़ित स्वर्ण-आसन प्रदान करने का गौरव प्राप्त किया था।

***
समाप्त
साभारः जातक कथाओं से संकलित।

   0
0 Comments